शून्य से शून्य तक - भाग 91

91=== आशी उद्विग्न थी, सामने पर्वत शृंखलाओं में से उगते हुए सूर्य को देखते हुए वह अपनी हाल में प्रकाशित पहली पुस्तक ‘शून्य से शून्य’ तक के मुख-पृष्ठ की तुलना सामने उगते हुए सूर्य को ताकते हुए करने लगी| कैसे हो सकती थी उसकी तुलना, उसने हाथ में पकड़ी पुस्तक के मुख-पृष्ठ को देखते हुए सोचा| इस पुस्तक में कहानी थी एक ऐसे व्यक्तित्व की जो जीवन भर शून्य के वृत्त में घूमता रहा है| इसीलिए यह शून्य से शून्य तक की कथा थी यानि कि आशी के शून्यता भरे जीवन की कहानी !  पूरा साल लगा था उसे अपने