85=== यहाँ से वहाँ दूर तक अकेलेपन का सैलाब था, चुटकी भर धूप नहीं थी, साँझ खुशनुमा नहीं थी, था तो केवल एकाकीपन और नि:सहाय बेचारगी! ऐसा भी प्रेम होता है जो खुद को मारने के साथ जाने कितनों को अपनी लपेट में ले ले? आशी की कलम जाने कितने दिनों से चल रही थी लेकिन उसके मन की पीड़ा अभी तक उसके भीतर एक ऐसे शिशु के बिलखने जैसी भरी हुई थी जिसकी रोते-रोते अभी साँस छूट जाने वाली हो| शिशु को कोई तो संभाल लेता है बेशक कभी परिस्थितिवश कोई अनजान व्यक्ति भी क्यों न हो लेकिन उसे