शून्य से शून्य तक - भाग 84

  • 339
  • 60

84=== आनन-फानन में आशी के कमरे के बाहर घर के सारे लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई| सब लोग खाने के बीच में ही आवाज़ें सुनकर ऊपर आ चुके थे, महाराज और घर के सारे सेवक भी ! दरवाज़ा खुलवाने की भरसक कोशिश की गई लेकिन कोई उत्तर न पाकर सबके चेहरों पर जैसे सफ़ेदी छा गई| किसी और अनहोनी की आशंका से सबका मन घबराने लगा|  अनिकेत, उसके पिता-माता सब ही तो यहीं थे| सबके मन में ही घबराहट पसरी हुई थी जो उनके चेहरों से छलकी पड़ रही थी| सबकी आँखों में न जाने कितने प्रश्न भर आए