साथिया - 139

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एक महीने बाद*अक्षत कोर्ट जाने के लिए तैयार हो रहा था और  साँझ अलमारी से निकाल निकाल कर उसका सामान बेड पर रख रही थी। "साँझ मेरा  हैंकि  दे दो प्लीज।"अक्षत ने कहा तो सांझ ने  हैंकि  निकाल कर रखा। "आप रेडी होकर आ जाइए  जज साहब मैं आपका नाश्ता  लगाती हूं तब तक।" सांझ  बोली और दरवाजे की तरह  बढ़ने लगी कि अचानक से उसे चक्कर आ गया पर इससे पहले कि वह गिरती अक्षत ने उसे थाम लिया और जल्दी से बिस्तर पर लेटायासांझ  के चेहरे पर पसीने की बूंदे आ गई  थीअक्षत ने अपने तुरंत फैमिली डॉक्टर को कॉल