साथिया - 121

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शालू और  सांझ आराम से बिस्तर पर लेटी अपनी-अपनी मेहंदी देख रही थी। "कितनी अच्छी फीलिंग होती है ना शालू दीदी यह शादी, मेहंदी, एकदम ट्रेडिशनल तरीके से करना..!!" सांझ  ने अपनी हथेलियां को देखते हुए कहा। शालू ने उसकी तरफ देखा।"और वह भी जब इतने लंबे थे इंतजार के बाद हो तो होने वाली खुशी का अंदाजा हम दोनों के अलावा और कौन लगा सकता है?" शालू ने कहा तो  सांझ   ने  उसकी तरफ देखा और वापस से अपनी मेहंदी में देखने  लगी। "पता है शालू दीदी इन  दो सालों में भले में  जज साहब   को भूल गई थी और सब कुछ