कोई नहीं आप-सा

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मेरे पापा शिक्षक थे | बचपन से ही देखती आई थी कि पूरे गाँव के लोग उनका काफी सम्मान करते थे | जिधर से भी निकलते थे वहीँ लोग हाथ जोड़कर 'गुरुजी नमस्ते', गुरुजी प्रणाम' कहे बिना आगे नहीं बढ़ते थे | पापा स्कूल में तो पढ़ाते ही थे, साथ में ही घर आने के बाद गाँव के कई गरीब बच्चों को भी पढ़ाते थे | बस उनको देखकर ही मेरे मन में शिक्षक बनने की अभिलाषा जाग उठी थी | मैं अक्सर पापा की नक़ल किया करती थी | जब कभी पापा किसी काम में व्यस्त होते तब तक