जादू वाला बर्तन

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डिगरी की सुबह से सिट्टीपिट्टी ग़ुम है। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा कि अब आगे क्या होगा या हो सकता है। जो कुछ उसने देखा वह जादू से कम नहीं था। वह अभी तक स्वयं को आश्वस्त नहीं कर पा रही कि ऐसा हो सकता है लेकिन आँखों देखी को कैसे झुठला दे ! सचमुच दुनिया में क्या-क्या होता है...वह तो कल्पना में भी वहाँ तक नहीं पहुँच पाती। डिगरी ने ईजा और बाबा को बताया तो सही लेकिन उन्होंने कितना समझा या उसपर कितना भरोसा किया पता नहीं। वह तो तब से खाट पर लेटे-लेटे बस वही सोच