शून्य से शून्य तक - भाग 77

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77===   आशिमा भी आशी को देख चुकी थी और जल्दी से भाई के कमरे में जाकर उसने भाई, भाभी को बता दिया था| सब जैसे अचानक सकते में आ गए| अनन्या इतनी घबरा गई थी कि उसके मुँह पर हवाइयाँ उड़ने लगीं, वह खड़ी थी, कुर्सी पर बैठ गई| उसकी मम्मी भी तैयार होकर अनन्या के कमरे में आ गईं थीं | मनु ने अनन्या के कंधे पर सांत्वना से हाथ रखा और दीना जी के कमरे की ओर बढ़ आया|  “आशी ! तुम?” दीनानाथ चौंक उठे|  “अरे भूत नहीं आपकी बेटी हूँ—आशी----”उसने अपनी टोन में कहा|  “ओ !