सावन का फोड़ - 19

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कर्मा दीदी पर मेरा कोई बोझ नही था उन्हें मेरी बदनामी और इज़्ज़त का डर था वह मुझे कुछ नही कहती लेकिन मन ही मन घुटती रहती एक दिन उनके अंदर कि चिंगारी बारूद बनकर निकली गुस्से में बोली जोहरा अपने कोख में पल रहे मुस्तकीम का पाप लेकर कही जाओ डूब मरो लेकिन हमारा पिंड अब छोड़ दो ।जोहरा अपनी बीती बताती जा रही थी शामली सुनती कभी उसकी आंखें डबडबा जाती जोहरा को ढांढस देती कहती अब घबड़ाओ नही ।जोहरा बोली दीदी मैं कर्मा दीदी का घर छोड़कर निकल तो गई लेकिन कहाँ जाँऊ समझ मे ही नही