शून्य से शून्य तक - भाग 37

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37==== अपने अतीत में विचरते हुए पूरी घटना को चित्रित करते हुए आशी के हाथ काँपने लगे | कैसा मनहूस दिन था जिसे ज़िंदगी में कभी नहीं भुलाया जा सकता | इस परिवार का हिस्सा ही तो थे डॉ.सहगल !वह कैसा बिहेव करती रही थी उनके व आँटी के साथ !---- अस्पताल के बाहर बहुत भीड़ थी | डॉ.सहगल गरीबों का फ्री इलाज़ करने के लिए कई इलाकों में जाने-जाते थे | ये दोनों मित्र ही जब किसी की सहायता करने पर आते तब अपने बारे में तो कुछ सोचते ही नहीं थे | दोनों की पत्नियाँ उनका मज़ाक उड़ाया