सदफ़िया मंज़िल - भाग 1

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भाग -1 प्रदीप श्रीवास्तव सदफ़िया मंज़िल का दरवाज़ा खुला हुआ है। वह भी सदफ़िया की तरह बहुत बूढ़ा हो चुका है। जगह-जगह से चिटक गया है। यह चिटकन और बढ़ कर दरवाज़े को ज़मीन न सुँघा दे, इस लिए जगह-जगह टीन की पट्टियों को कीलों से जड़ा गया है। ये टीन की पट्टियाँ भी जंग (मुर्चा) खा-खा कर कमज़ोर पड़ती जा रही हैं। सदफ़िया दरवाज़े की चिटकन को टीन, कीलों के ज़रिए जितना रोकने की कोशिश कर रही है, वह उसके शरीर की झुर्रियों की तरह उतनी ही बढ़ती जा रही है।  सदफ़िया जब-जब उसे ग़ौर से देखती है तो