जोखिनी - 1

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रात के 12:30 बज रहे थे एक सुनसान पतला सा रास्ता जो कि कब्रस्तान की तरफ जा रहा था उस पर एक नई नवेली सुहाग की चहल कदमी हो रही थी उसके चेहरे पर डर साफ नजर आ रहा था रात का सन्नाटा उसकी हिम्मत को तोड़ने की ताकत रखता था ले फिर भी अपने हाथ में एक छोटी सी काले कपड़े की पोटली लिए वह कब्रस्तान के गेट तक पहुंच गई उसने कब्रस्तान का गेट खोला और अंदर कदम रखा चारों तरफ कब्र ही कब्र और उनके बीच से होती हुई वह सुहागन एक छोटी सी कब्र के करीब