भगवान्‌ के चौबीस अवतारों की कथा - 2

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(२) श्रीवराह-अवतार की कथा— ब्रह्मा से सृष्टिक्रम प्रारम्भ करने की आज्ञा पाये हुए स्वायम्भुव मनु ने पृथ्वी को प्रलय के एकार्णव में डूबी हुई देखकर उनसे प्रार्थना की कि आप मेरे और मेरी प्रजा के रहने के लिये पृथ्वी के उद्धार का प्रयत्न करें, जिससे मैं आपकी आज्ञा का पालन कर सकें। ब्रह्माजी इस विचार में पड़कर कि पृथ्वी तो रसातल में चली गयी है, इसे कैसे निकाला जाय, वे सर्वशक्तिमान् श्रीहरि की शरण गये। उसी समय विचारमग्न ब्रह्माजी की नाक से अंगुष्ठ प्रमाण एक वराह बाहर निकल पड़ा और क्षणभर में पर्वताकार विशालरूप गजेन्द्र-सरीखा होकर गर्जन करने लगा। शूकररूप