आस्था एव श्रद्धा

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आस्था एवं श्रद्धा -आस्था अर्थात अनुभूति का याथार्त आस्था अस्तित्व का वह बोध जो स्वयं के होने के प्रमाण जैसा होता है ।आस्था वह भाव है जो किसी भी अंतर को समाप्त कर एक नई अभिव्यक्ति को जन्म देता है । वास्तव में आस्था स्थाई भाव ही है जो बोध कि इतनी गहराई से प्रस्फुटित होता है की उसका खंडित होना संभव होता है। आस्था संबंधों के अस्तित्व का अवनी आकाश है आस्था के ही धरातल पर प्रेम, घृणा ,द्वेष ,दम्भ,आदि भवों का सांचार होता है जिसके कारण समाज का निर्माण एव उद्भव होता है ।आस्था ही है जो कण