हास्य का तड़का - 36

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साहित्यिक कल्पना की परिचर्चा में रंगमंच पर सभी सब्ज़ियां उपस्थित हैं सुनाने को अपनी कथा सारी सब्जियां बोली भाइयों एवं बहनों आओ सुन लो हमारे मन की कथा/व्यथा करेला जी बहुत उदास बोले कड़वे होने पर भी देते हैं बीमारियों को मात फिर भी नहीं खाना चाहता है हमें कोई आज कुछ लोग खाते भी है ऐसेनाक मुह हो गए टेढ़े जैसे ‍फिर भिंडी जी बोली मैं हरी कोमल फिर भी लोग दूर भागते कहते हैं तुम चिपचिप करती घर में औरतें झिकझिक करती इतने में लौकी बोली मैं हूं सुन्दर सुडौल मुझे देख औरतों को होती हैं बड़ी जलन