सुख की खोज - भाग - 2

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कल्पना अब तक भी मध्यम वर्गीय परिवार का हिस्सा ही बनी रही। तभी एक दिन स्वर्णा ने कल्पना को फ़ोन किया, "हैलो कल्पना।" “हैलो स्वर्णा कैसी है तू? बहुत दिनों बाद तेरी आवाज़ सुन कर बहुत अच्छा लगा।” “मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ, तू बता तू कैसी है? पढ़ाई कैसी चल रही है?” “स्वर्णा सब कुछ एकदम ठीक चल रहा है। अच्छा बता, कुछ ख़ास बात है क्या?” “हाँ कल्पना, तुझसे एक ज़रूरी बात करनी है।” “हाँ स्वर्णा बोल क्या बात है?” “कल्पना मुझे मेरे साथ काम करने वाला राहुल बहुत अच्छा लगता है। तू जानती है ना उसे, उससे