मंजिल अपनी अपनी - 1

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मोहन खासते-खासते बोला दरवाजा खोलो सूरज बेटा।चंदा एकदम बौखला गई उसको लगा इस वक्त कौन आया होगा।मोहन बोला मैं चाचा मोहन आया हूं।चंदा झलाए हुए स्वर में कहा अच्छा-अच्छा रुको कपड़े बदल रही हूं बडबडाते हुए बोली लो फिर यह बुड्ढा आ गया।मोहन बोला कोई बात नहीं बहू मैं बहार ही खड़ा हूं।।चंदा ने कहा कपड़े बदल रही थी सुन नहीं सकते थे।मोहन बोला जरा ऊंचा सुनता हूं। पर सुन लिया था खुश होना आज तुम्हारी शादी की वर्षगांठ है इस थैली में फल लाया हूं रख लो।।चंदा भी चिल्ला के बोली इसकी क्या जरूरत थी जो थैला उठाकर चले