बस वाली प्रेम कहानीक्या बताउ दोस्तों, अच्छी कट रही थी, मस्त जीवन था, किसी का बंधन न था, एक दिन मिली वो मुझे बस स्टॉप पर और रोज़ाना मिलने लगी उसी स्टॉप पर।एक छोर पर वो बैठती और दूसरे छोरे से मैं उसे निहारा करता, सिर्फ उसके लिए अपने बाप के बोलने से पहले जागता और तो और उसके लिए सुबह सुबह नहाने का भी मन करता, मेरे तन से खुशबू उस तक पहुंचे, बाजार के सारे डियोड्रेंट घर लाके ट्राई कर चूका था।अब तो बस का कंडक्टर भी मेरी भावनाओं को समझता है, मेरे नैन मटक्को पर देर से