साथिया - 4

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गजेंद्र सिंह का घर रात का समय। पुरा घर गहरी नींद मे था सिर्फ नियति जाग रही थी। उसकी नजर अपनी घडी पर थी। जैसे ही रात के साढे बारह बजे नियति धीरे से उठकर गैलरी की एक अलमारी में रखे डब्बा वाले फोन ( लैंडलाइन) फोन के पास आई। अंधेरे में टटोल के उसने उस डिब्बे के निचले हिस्से से गोल पहिया घुमाकर उसकी घंटी बिल्कुल कम कर दी और धड़कते दिल से फोन को देखने लगी। पांच मिनट बाद हल्की सी घण्टी बजी तो नियति ने झट से फ़ोन उठाया। "हैलो..!" नियति बोली और फिर इधर उधर देख