गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 3

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होता था तब यही सपना देखता।उन दिनों में लेखक नही बना था।इसलिए ड्यूटी से आने के बाद अपने कमरे में ही रहता।पढ़ने का शौक जरूर था।उपन्यास,पत्रिकाएं पढ़ता या पिक्चर देखने चला जाता।सन 1971 महीनों तो अब मुझे याद नही लेकिन श्राद्ध से पहले की बात है।बापू का श्राद्ध पड़वा के दिन पड़ता है।मैने दस दिन की छुट्टी ली थी। उन दिनों आगरा से अहमदाबाद के बीच छोटी लाइन थी।आगरा से बांदीकुई के लिए सिर्फ 3 ट्रेनें थी।आगरा से बांदीकुई पैसेंजरआगरा से अहमदाबाद एक्सप्रेसआगरा से बाड़मेरउन दिनों बांदीकुई पैसेंजर शाम को पांच बजे चलती थी।मैं इस ट्रेन से बांदीकुई गया था।मेरा