आज सुबह मेरी आँखें तब खुली जब मेरे कानो में बारिश की वो हल्की-हल्की सी टिप-टिप की आवाज़ सुनाई दी। बाहर देखा तो बदली छाई हुई थी, बिजली चमक रही थी, और अब तो बारिश की रफ़्तार भी बढ़ती जा रही थी। चाय के साथ जब बैठी तो कुछ बिसरे पुराने ख़याल मेरे स्मृति से चालक निकले। पाँच साल पहले भी एक ऐसी बारिश में मैंने अपना सब कुछ खो दिया था। उस रात सोने में काफ़ी देर हो गयी थी, ग़म उसे खोने का था मगर दिल को तो बस रोने का था। आँखें सूझ गयी थी और बिस्तर