यह संकट बहुत बड़ा था,स्थिति की गम्भीरता को स्वामी जी भांप चुके थे....उन्होंने मुझे महाभारत काल की पवित्र भस्म से भरा हुआ एक अभिमन्त्रित ताबीज़ दिया...वह भस्म उस लाक्षागृह से प्राप्त हूई थी,जिसमें पांडवो ने एक लंबा समय बिताया था.....पांडवो के तपोबल की शक्ति के कारण उस भवन के कण कण में विद्यमान पवित्रता उसके जलने के बाद भी नष्ट नही हुई थी .....साथ ही स्वामी बटुकनाथ जी ने शीघ्र ही स्वयं भी देवगढ़ आने का आश्वासन देकर मुझे काशी से विदा किया। अब देवगढ़ जाते वक्त मेरे पास उस शैतान अर्थात वैट वुल्फा के इतिहास से जुड़े सारे राज