व्यंग्य टूबीएचके के शिकंजे में फंसी जिन्दगी यशवंत कोठारी जिंदगी का सफ़र आज कल टू बीएचके के मकड़ जाल में फंस कर रह गया है ,जिसे देखो वही इस अंधी दौड़ में शामिल है ,ये कोई नहीं सोचता की इस अंधी दौड़ के अंत में एक अँधा कुआँ है और यह रास्ता कहीं नहीं जाता .विकास और प्रगति की अंधी दौड़ ने आँखों पर एक ऐसा काला चश्मा लगा दिया है की कुछ सूझता ही नहीं .बिल्डरों ने हर तरफ से घेर रखा है ऐसे ऐसे सब्ज बाग दिखाते हैं की पूछों मत . नयी पीढ़ी सोचती है एक