हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 7

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बम्बईका जीवनभाईजी सपरिवार रतनगढ़ पहुँच गये पर वहाँ घर के सिवा और था ही क्या ? दादाजी की कमाई शिलाँग में भूकम्प के भेंट चढ़ गई थी। कलकत्ते की वृत्ति से ही कुछ मिला वह राजनीति, समाज-सेवा और संत-महात्माओं के समर्पित हो गया। पिताजी के जानेके बाद कलकत्ते की दूकान भाईजी सँभालते थे, पर इनकी अनुपस्थिति में वहाँ केवल कर्ज ही बचा था। इस अव्यवस्थित स्थिति में पारिवारिक जीवन-निर्वाह की समस्या सामने थी। भाईजी के मनमें कोई उद्वेग नहीं था, क्योंकि ये सब बातें पहले सोचकर ही राजनीति मे प्रवृष्ट हुए थे। अनुकूल पत्नी और सहिष्णु दादी के कारण दिन