अलिफ लैला - 12

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'रानी के प्रेम को जीवित रखने के लिए इतना ही यथेष्ट था। वह उससे घंटों प्रेम की बातें करके अपने चित्त को सांत्वना दिया करती थी। दिन में दो बार उसके समीप जाती थी और देर तक उसके पास बैठी रहती थी। मैं जानता था कि वह क्या करती है फिर भी सारे कार्य कलाप ऐसे साधारण रूप से करता रहा जैसे मुझे कोई बात विदित नहीं है। किंतु एक दिन मैं अपनी उत्सुकता नहीं रोक सका और मैंने जानना चाहा कि वह अपने प्रेमी के साथ क्या करती है। मैं उस मकबरे में ऐसी जगह छुप कर बैठ गया