तुम्हारे नाम एक पत्र और

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आज चालीस साल बाद एक बार फिर तुम्हें चिट्ठी लिखने की इच्छा हुई है। इच्छा, आज ही नहीं सच कहूं तो पिछले कई दिनों से दिल के, दिमाग के न जाने कितने कोनो में सागर में किसी उफान की तरह हिलोरे ले रही थी। कारण क्या है, ये तो विश्वास पूर्वक मैं भी नहीं कह सकता। कहते हैं दिल के जो अरमान या इच्छाएं दिल में दबी रह जाती हैं या फिर पूरी नहीं हो पाती, वो शायद जिंदगी भर या यूँ कहूं कि जिंदगी के बाद भी इंसान का पीछा नहीं छोड़तीं। तुम अक्सर गीता के उद्धरण दिया करती