मोहब्बत

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मोहब्बत नाम एक अलग ही नाम है कब कैसे कहा किस से हो जाए कुछ पता नहीं ना तजुर्बा ना ही कुछ एहसास होता है बस एक नज़र मिली और मोहब्बत हो गई ना अंजाम का डर ना ही कीसी का डर पर अफ़सोस तब होता है जब कोई इसे खोता है मेरे साथ तो ऐसा कुछ हुआ नहीं पर डर सा लगा रहता है की अपनी खास चीज़ तो अपने पास है मगर नज़र उस पे कीसी और की भी हो पर मैं ऐसा नहीं होने दुगी मेने कितने अरमानों से कीतनी तकलीफ़ से उसे पाया है ऐसे रहता