आँख की किरकिरी - 34 - अंतिम भाग

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(34) आशा ने कहा - मन में कोई गाँठ मैं रखना तो नहीं चाहती हूँ मौसी, सब भूल जाना ही चाहती हूँ, मगर भूलते ही तो नहीं बनता।  अन्नपूर्णा बोलीं - तू ठीक ही कहती है बिटिया, उपदेश देना आसान है, कर दिखाना ही मुश्किल है। फिर भी मैं तुझे एक उपाय बताती हूँ। जी-जान से इस भाव को कम-से-कम रखो, मानो भूल गया है। पहले बाहर से भुलाना शुरू कर, तभी भीतर से भी भूल सकेगी।  आशा ने सिर झुकाए हुए कहा - बताओ, मुझे क्या करना होगा?  अन्नपूर्णा बोलीं - बिहारी के लिए विनोदिनी चाय बना रही है