एक चिट्ठी प्यार भरी - 2

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प्यारी बहना, रक्षाबंधन की सुबह तुम्हारी भेजी हुई राखी पहन ऑफिस तो चला गया, पर न जाने क्यूं कहीं कुछ कमी-सी रह गई। याद है बहना, बचपन में राखी के दिन हमदोनों सुबह से ही कितना उत्साहित रहा करते थे! पापा की लायी वो बड़ी वाली राखी देख आंखें खुशी से फैल जाया करती थी। सुबह से ही जैसे किसी जश्न का माहौल हुआ करता था। हलवा-पूरी, मिठाई और हाँ, मेरे पसंद वाली खीर की खुशबू से पूरा घर महक उठता था। चुपके से पापा का मुझे ग्यारह रुपए पकड़ा देना, फिर राखी बंधवाने के लिए जल्दी से तैयार होकर