भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 15

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15 आंठवा अंतिम दिन आज का दिन मुझे सिर्फ अपने हॉस्टल और लेह के रास्तों के साथ बिताना था। हॉस्टल में मुझे कई मित्र मिले। इन दो वियतनामी मित्रों में से एक से मेरी दोस्ती अभी तक कायम है। एक दिन ह तीनों साथ में घूमे थे। मून रॉक तक उनके साथ घूमने का अनुभव कुछ अपनी पुरानी मित्रों के साथ घूमने जैसा ही था। रिश्तों की क्या चाहत होती है? प्रेम एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान! यही सब मैंने इन दोनों के साथ महसूस किया। रात के समय जब हमको अपने कमरे में बहुत ठंड लग रही थी