रूह...

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बहुत पुरानी बात है यही कोई सन् १९७५ की,मैं ने उस साल शहर के काँलेज मे बी.ए. प्रथम वर्ष में एडमिशन लिया था,उस समय मेरे कस्बे से दो ही रेलगाड़ियाँ चला करतीं थीं, एक दोपहर में और एक रात में,मैं ज्यादातर रात वाली रेलगाड़ी से ही आना जाना पसंद करता था।। दशहरें की छुट्टियाँ पड़ी,सारा हाँस्टल लगभग खाली हो चुका था और जो बचे खुचे लोग थे वे भी अपने अपने घर जाने का मन बना चुके थे,तो मैने सोचा मैं अकेला यहाँ क्या करूँगा, मैं भी रात की रेलगाड़ी से घर निकल ही जाता हूँ और काँलेज आने