रात का वक्त और गहरा काला अँधेरा,उल्लूओं की डरावनी आवाज़े किसी की भी ज़ान ले ले,ऊपर से घोड़े के टापों की अज़ीब सी ध्वनि,आजकल के जमाने मेंं भी हवेली में दादा-परदादाओं की बग्घी अभी बची है,मोटर भी है लेकिन गाँव के ऊबड़खाबड़ रास्तें में चलने पर उसमें कोई ना कोई ख़राबी आ जाती है और वैसे भी ख़राब होने पर शहर में बड़ी मुश्किल से उसका सामान मिल पाता है क्योंकि वो अंग्रेजों के जमाने की क्लासिक मोटर है,ठाकुर साहब ने बड़ी शान से उस जमाने में खरीदी थी तभी पुरानी हवेली के भारी-भरकम गेट के खुलने से चे...चे...की आवाज जैसे