परिवर्तन ही यदि जीवन हैतो हम बढ़ते जाते हैंकिंतु मुझे तो सीधे सच्चेपूर्व भाव ही भाते हैं।मानव जीवन में परिवर्तन दो प्रकार का होता है। पहला वाहय भौतिक प्रगति से संबंधित परिवर्तन और दूसरा है वैचारिक परिवर्तन। वर्तमान में भौतिक प्रगति की होड़ में हम वैचारिक रूप से अधिक भौतिक स्वार्थ परक एवं संकुचित विचारों वाले होते जा रहे हैं। युवा पीढ़ी अपने संस्कार एवं संस्कृति की विशालता एवं गहनता से कोसों दूर हो चली है। भौतिक परिवर्तन जहां एक और हमें प्रगति विकास एवं उन्नति की ओर ले जा रहा है वहीं दूसरी ओर उसके सदृश्य होने वाले वैचारिक