कविकुलगुरु चूड़ामणि महाकवि कालिदास द्वारा विरचित "मेघदूत" न केवल भारतीय वांग्मय का अनुपम अंश है अपितु विश्व साहित्य में बेजोड़ है एक सौ बीस ललित पदों वाली इस रमणीय कृति में महाकवि ने कुबेर द्वारा शापित अलकापुरी से निष्कासित बिरह विक्षिप्त यक्ष की वियोग व्यथा का मर्मस्पर्शी चित्रण कर अपनी प्रसन्न मधुरा वाणी को मंदाक्रांता की झूमती चाल प्रदान कर वह अलौकिक रस धारा वहाई है जिसमें काव्य रसिक आध्याअवधि डूबते उतराते चले आ रहे हैंमेघ अथवा प्राकृतिक वस्तुओं को संदेशवाहक के रूप में नियोजित कर संदेश प्रेषण की उद्भावनाका मौलिक श्रेय कालिदास को मिलना चाहिए या नहीं इस विषय