शारीरिक सौन्दर्य तथा सौन्दर्याधायक गुण ( अ ) बाह्रय सौन्दर्य एवं आभ्यान्तर सौन्दर्य ( ब ) सांस्कृतिक अलंकार ( सत्वज गुण ) हाव , भावादि ( स ) प्रसाधन- आभूषण , वस्त्र , पत्ररचना , लेप , गन्ध माल्य , सुगन्धित द्रव्य , केश विन्यास , स्नान , जलक्रीडा आदि । ( द ) बाहय सौन्दर्य सहायक - संगीत , नृत्य , नाट्य चित्रकला , अदि । बाहृय सौन्दर्य एवं आभ्यान्तर सौन्दर्य सौन्दर्य मानव जीवन का सर्वस्व है । कली में अन्तर्निहित मधुमास के समान प्रत्येक मानव की अन्तरात्मा में भी सौन्दर्य छिपा रहता है । महाकवि कालिदास सौन्दर्य के कवि है सच तो यह है कि