प्यार भी इंकार भी - 1

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सूरज दूर क्षितिज में कब का ढल चुका था।शाम अपनी अंतिम अवस्था मे थी।धरती से उतर रही अंधेरे की परतों ने धरती को अपने आगोश में समेटना शुरू कर दिया था।आसमान मे मखमली बादल छितरे पड़े थे।लेकिन बरसात का अंदेशा नही था।जुहू पर अच्छी खासी भीड़ थी। बिजली के खम्भो पर लगी ट्यूब लाइट जल चुकी थी।रंग बिरंगे कपड़ो मे लिपटे हर उम्र,हर वर्ग के मर्द औरत समुद्र की ठंडी लहरों का आनंद ले रहे थे।सब अपने मे मस्त।कौन क्या कर रहा है इसकी सुध लेने वाला कोई नही।चारुलता और देवेन एक दूसरे का हाथ थामे एक छोर से दूसरे