प्रायश्चित - भाग-21

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किरण ने अपनी उखडती हुई सांसो को फिर से समेटा और शिवानी की ओर देखते हुए बोली "आपने मुझे जीवन का नया नजरिया दिया। मुझमें आशा का संचार किया। आपके साथ-साथ मैं तो मांजी की भी शुक्रगुजार हूं कि उनसे मुझे अपनी मां जैसा प्यार मिला। लेकिन मैं अभागी मेरे जीवन में प्यार व अपनापन तो धूप की तरह था। जिसे जितना मैं आंचल में बांधने की कोशिश करती वह सांझ होते होते स्याह अंधेरे में बदल जाता।" "किरण जब तुम हमारा इतना मान सम्मान करती थी, इतना प्यार करती थी! फिर क्यों तुमने इतना घिनौना काम किया। क्यों मेरे