झूठ घर

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झूठ घरउस डायरी में लेखक का कहीं भी नाम नहीं है, अन्यथा ‘झूठ घर’ का वह प्रत्यक्षदर्शी, बिन बुलाया मेहमान आज के सफल लेखकों में गिना जाना. लेखक बनना उसका उद्‍देश्य रहा हो, ऐसा भी जान नहीं पड़ता. हो सकता है, वह केवल घुमक्कड़ रहा हो.उसने लिखा है घोड़ा पछाड़ पीले मोटे सांप ने उन दो भूवैज्ञानिकों का पीछा किया था और मुझे भी देख लिया था. इसलिए मैं उल्टी दिशा में बेतहाशा दौड़ता रहा था घंटों तक... और रास्ता भूल गया था.तब रात के धुंधलके में दूर दिखाई दिया था वह मनहूस अष्टकोणीय घर.घर को देखते ही प्यास से तड़फ उठा था न जाने क्यों. कदम उसी ओर बढ़ गए.