31--- यूँ तो जीने को पूरी हो जाती हैं तमाम साँसें तुम्हारे बिन कहीं उखड़ी सी हो जाती हैं बहुत दूर जाना है दहशत अभी से है क्यों ये और समुंदर की गहराई का माप भीतर है तेरी यादों का सिलसिला हरेक पल चलता न जाने कौनसी है साँस जो तुझसे है जुदा मेरे भीतर तो एक खलबली सी रहती है जाने कौनसी चिंगारी की आँच सहती है मेरे भीतर खुदा किसी ने बोया है रात और दिन का सारा ही चैन खोया है पत्ते-पत्ते पे लिखी सारी दास्ताँ कैसे अँधेरे में टिमटिमाती हो रौशनी जैसे वैसे मुझको जहाँ में