गाँधीनगर के वो छोटे से घर में आज चहल पहल ज़्यादा थी घर को पूरी तरह सेफूलों और रोशनी से सजाया गया था, घर सारा महेमानो से भर गया था कहीबातें चल रही तो कही नाच गाना तो कहीं खाना पीना, सरोज बहन भी इधर उधरदोड रही सबको काम दिखाए जा रही थी, बहुत ख़ुश नज़र आ रही थी क्यूँ ना होख़ुश आज उनकी बेटी रुचि की शादी जो थी, रमेश भाई भी महेमानो के स्वागतमें लगे थे, सरोज बहन और रमेश भाई का छोटा सा संसार था रुचि और केतु, सरोज भले ही महेमानो स्वागत के लिए व्यस्त हो पर वो किसी ना किसी बहानेअपनी बेटी के कमरें में चली जाती और देखती की उनकी बेटी ख़ुश नज़र आ रहीहे की नहींसरोज बहन - रुचि तेरी फ़्रेंड पारुल अभी तक नहीं आयी ज़रा पूछ ना फ़ोन करके कहाँ रह गयीं? बारात किसी भी वक्त आ रही होगी.रुचि - हाँ माँ मेने उसको दो बार कॉल किया पता नहीं कहाँ रह गयी हे? आ जाएगी आप चिंता मत करो. सरोज बहन बड़े ध्यान से अपनी दुल्हन के रूप में सजी हुई बेटी को देख रही थी.रुचि- क्या माँ क्या देख रही हो में केसी लगती हूँ ?सरोज बहन- हाय मेरी बच्ची किसी की नज़र ना लगे तुजे, पर बेटा तू ख़ुश तो हे ना ? देख आज से तेरी नयी ज़िंदगी सुरु होने जा रही हे, पिछली सब बातों को भुला देना बेटा.रुचि - हाँ माँ आप चिंता मत करो में ख़ुश हूँ.तभी पारुल लगभग दोड़ती हुई कमरें में आयीं.सरोज बहन - ले अभी आयी हे तू कबसे हम तेरी राह देख रहे थे जल्दी आना चाहिए ना बेटा, अब रुचि के पास ही रहना कहके सरोजबहन चली गयी.रुचि- पारुल की बच्ची कहाँ थी तू ?दो बार कॉल कर चूकी तुजे, अब आयी हे देख तो ज़रा केसी लग रही हूँ, रुचि का ध्यान पारुल कीऔर गया बड़ी बेचेन लगी.रुचि - क्या हुआ?इतनी बेचेन क्यू हे?पारुल ने जल्दी से कमरें का दरवाज़ा बंध किया और काँपते हाथों से रुचि के हाथ में एक लेटर रख दिया.रुचि- क्या हे ? और तू इतनी घबरायीं सी क्यू हे?पारुल - कुछ मत पूँछ रुचि पहेले ये लेटर पढ़ तेरे लिए बहुत ज़रूरी हे.रुचि ने लेटर को आगे पीछे करके देखा, अच्छा किसका लेटर हे करके उसने लेटर खोला लिखावट बिलकुल जानी पहेचानी लगी, उसकापूरा शरीर कांपने लगा आँखो को यक़ीन नहीं हो रहा था, काँपते हुए बोली नीरव??पारुल - हाँ नीरव, ये उसिने भेजा हे तेरे लिए.रुचि- पर इतने सालों बाद केसे ? अभी तक रुचि को यक़ीन नहीं हो रहा था.पारुल - हाँ रुचि ये उसिका ही हे आज सुबह ही आया मेरे घर पे,हैदराबाद से ,पीछे भेजने वाले का नम्बर और अड्रेस हे और उसी दिए गएनम्बर पर मेने कॉल किया तो पता चला ये वहाँ की हॉस्पिटल की किसी नर्स ने भेजा हे, जो नीरव ने उसे कहा था. रुचि काँपते हुए लेटरको पढ़ने लगी.Dear रुचि,जानता हूँ इतने सालों बाद तुम्हें याद कर रहा हूँ. पर ये तुम्हें दिए गए वचन का ही पालन कर रहा था. यक़ीन मानो ऐसा एक भी दिन नहींगया होगा की मेने तुम्हें याद ना किया हो. आशा के साथ शादी करके मे यहाँ हैदराबाद में आ बसा. आशा के साथ मेने अपनी लाइफ़ सुरुकी पर मन से तुम कभी नहीं गयी. एक प्यारा सा बेटा भी हुआ उसका नाम वही रखा जो तुम चाहती थी अंशु. सबकूछ अच्छा ही जा रहाथा पर अचानक माँ हमें छोड़कर चल बसी. बस माँ के अस्थि विसर्जन के लिए जा रहे थे और गाड़ी का ऐक्सिडेंट हो गया आशा तो उसीवक्त मुजे और अंशु को छोड़कर चली गयी. में और अंशु ही रह गए पर अब मुजे भी जाना पड़ेगा.और मेरी ज़िंदगी की इस मुस्किल घड़ी मेंमुजे सिर्फ़ तुम पर ही भरोसा हे रुचि. तुम्हें मेरे प्यार का वास्ता मेरे बेटे को संभाल लो. मेरे अंशु को मेरी निशानी समजकर अपना लो रुचिमें चेन से मर सकूँगा. नीरव..रुचि की जेसे पेरो तले ज़मीन ही खिसक गयी उसे कोई होस ही नहीं रहा गिरने वाली थी की पारुल ने उसे थाम कर बेठा दिया. रुचि नहींसमज पायी क्या करे बस ऐसे ही गुमसूम सी बेठी रही.पारुल- क्या सोचा रुचि तूने यू बेठे रहने का समय नहीं कभी भी तुजे मंडप ले आने को कहा जा सकता हे, अगर तू कहे तो में फ़ोन करकेमना कर दु.अचानक से रुचि जेसे होस से जागी नहीं पारुल मेने नीरव से सच्चा प्यार किया था मेने उसके इलावा किसी के बारे में कभी नहीं सोचा परजब पता चला था की वो अपने परिवार में ख़ुश हे तो मेने भी माँ का कहना मान लिया था पर अब जब उसने मेरे लिए प्यार की निशानीछोड़ी हे तो केसे ठुकरावु में अंशु को अनाथ केसे छोड़ सकती हूँ जब उसकी माँ यहाँ हे?पारुल - क्या मतलब हे तेरा ?क्या सोच रही हे? दरवाज़े पर बारात खड़ी हे कम से कम अपने माँ बाप का सोच तू नहीं कर सकती ये.रुचि - सोच लिया जा माँ को बुला.पारुल- पर....ज़रा बीच में उसकी बात काटकर रुचि ने कहा पारुल देर मत कर और जा. पारुल हिचकिचाते हुए जाने लगी. कुछ ही देर मेंसरोज बहन और पारुल आए रुचि को देख सरोज बहन के मन में हज़ारों कुशंका उठने लगी घबरायी सी अक़दम पास आकर बोली क्याहुआ रुचि तूने अपना साज सिंगार क्यू बदला ?क्यू उतरा दुल्हन का जोड़ा? रुचि ने धीरे से अपना हाथ आगे करके नीरव का लेटर माँ केहाथों थमा दिया पूरे अचरज के साथ सरोज बहन एक ही बार में लेटर पढ़ लिया और डरते रुचि की और देखा. भारी आवाज़ में बोली नारुचि यू तेरी ज़िंदगी नहीं बरबाद होने दूँगी.रुचि - माँ तुम जानती हो मेरी ज़िंदगी सदा से उसकी ही थी तुमने देखा हे माँ, समजा हे अब मत रोको. सरोज बहन उनकी बेटी के प्यार सेअनजान नहीं थी उन्होंने देखा था बेटी को रात भर रोते बिलखते, वो जानती थी रुचि का नीरव के प्रति प्यार केसा था बहुत समजाया थानीरव की माँ को पर वो नहीं मानी थी चार साल बीत गए थे लेकिन रुचि अपने पहेले प्यार को नहीं भूली थी. रमेश भाई तबियत का बहानानहीं देते तो शायद रुचि शादी के लिए कभी हाँ नहीं करती.पर नहीं मन में ही सोचा ऐसे केसे रुचि को अपनी ज़िंदगी के साथ खेलने दु?समाज क्या कहेगा? किसका बच्चा हे पूछेगा तो रुचि क्या जवाब देगी नहीं नहीं ये नहीं होने दे सकती कहके वो माथा पकड़कर बेठ गयी.रुचि - तुम ही समज सकती हो नीरव ने मूँज पर भरोसा किया हे अंशु को केसे अनाथ छोड़ दु सरोज बहन - बारात दरवाज़े पर रुचि हमारी इज्जत का तो ख़याल कर, तेरे पापा ये नहीं सह पाएँगे और तू क्या जवाब देगी सबको क्यूतोड़ रही हे शादी और क्या जवाब देगी किसका बच्चा हे ?रुचि - में कुछ ग़लत नहीं कर रही माँ नहीं बसा सकती नयी ज़िंदगी नहीं जी पाऊँगी अंशु को अनाथ छोड़के के.सरोज बहन की जेसे सोचने समजने की शक्ति ही चली गयी थी उनको पता ही नहीं चला कब रमेश भाई दरवाजे पर आकर खड़े थे औरमाँ बेटी की सारी बात सुन रहे थे. बेटी को यू तड़पता देख उसके नीरव के साथ प्यार की गहराई समज आ गयी उनको जानने में देर नहींलगी की अंशु को अपनाना रुचि के लिए क्या मायने रखता था. धीरे से आगे आके रमेश भाई ने रुचि के सर पर हाथ रखा और कहा बहोततड़पी अपने प्यार के लिए अब जाके मिला तुजे जा ले आ तेरे प्यार को घर...रुचि - पापा आप ... रमेश भाई ने इशारे से उसको बोलते बंध किया.रमेश भाई - में यहाँ सब संभाल लूँगा तू जा रुचि जेसे एक नयी उमंग आ गयी पूरे शरीर में ऐसे दोड़ कर रमेश भाई को गले लगा दिया, ख़ुशी से उछलकर उसने पारुल को बोला चल चलते मेरे प्यार को वापस लाने..