25---- एक मनी-प्लांट की बेल ने सजा रखा था घर को मेरे दूर-दूर तलक फैली थी सुंदर बेल एक किनारे से दूसरे किनारे तक सच कहूँ तो वो मेरी हमजोली थी देख हरियाली की एक चादर सी मेरे चेहरे का कँवल खिला सा जाता था मेरी आँखों की रोशनी भी तो बढ़ जाती थी हरेक लम्हा मेरे साथ मुस्कुराता था एक दिन यूँ अचानक चूं-चूं सुनाई दी मुझको हरे पत्तों के बीच गुनगुना रहा था कोई जैसे फुसफुसाता सा मुझको बुला रहा था कोई वो तो जोड़ा था एक प्यारी सी चिड़िया का मेरे कानों में वो मिसरी सी जैसे