19 -------- न जाने कौन रोक देता है मुझको यूँ ही टोक देता है मुझे कुछ गुनाह करने से मेरे कदम नहीं बढ़ पाते हैं, थम जाते हैं और बेबस सी एक आह फिसल जाती है आसमान से ज़मीं के आँगन तक तेरी यादों के बीच ही घिरी मैं जाती हूँ तेरी यादों के ही कँवल खिला करते हैं और मन घूमता रहता है उनके ही संग भरी हो भीड़ हरेक सू ही पर मैं तन्हा तेरी यादों के दरीचों में घूम आती हूँ जैसे कोई भूली हुई सी कहानी मन में हो जैसे सागर की रवानी मेरी धड़कन में