दो थे बैल-इक हीरा इक मोती

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‘भैया मोती, मुझे मुंशी प्रेमचन्द्र के समय की बातें याद आ रही हैं। उन्हें हमारी कितनी चिन्ता रही होगी, उनके कारण लोग हमें भूले नहीं हैं, लेकिन वह जमाना तो बीत गया। हमारे कई जन्म गुजर गये। लोगों ने हमारे क्या क्या नाम नहीं रखे? इस जमाने में आकर भी उन्हीं नामों से हमारी पहचान है।’ ‘ठीक कहते हो हीरा, हमने क्या क्या नहीं देखा! हमने वह जमाना भी देखा है जब तक मालिक हमें भर पेट नहीं खिला देता था तब तक वह भी खाना नहीं खाता था। उसे अपने से पहले हमारी चिन्ता घर के सदस्यों की तरह