खाना खाने के बाद सब अपने-अपने कमरे मे चले गए, अख्तर भाईजान अपना टाइपराइटर लेकर एक छोटे से कमरे कि ओर चले गए। वह कमरा बहुत ही भयानक और डरावना था। वहाँ से बाहर बगीचा नज़र आता था, भाईजान खिड़की के पास बैठ गए और अपनी नॉवेल के बारे में सोचने लगे। तभी सादिया भाभीजान आ पहुँचती है, सादिया भाभीजान : अरे... ये क्या? आज से ही लिखना शुरू कर दिया, कम से कम आज तो आराम कर लेते। अख्तर भाईजान : सादिया... देखो! मुझे बहुत काम है, तुम चलो बस मैं आता हुँ। सादिया भाभीजान : ओह..! काम तो कल भी हो