चांदी के कल्दारी दिन रातों के घर बंधुआ बैठे बच्चों से बेगारी दिन खूनी तारीखे बनकर आते हैं त्योहारी दिन ! 1 पेट काटकर बाबा ने जो जमा किए थे वर्षों में उड़ा दिए दो दिन में हमने चांदी के कल्दारी दिन ! 2 नौन तेल के बदले हमने दिया पसीना जीवन भर फिर भी खाता खोले बैठे बेईमान पंसारी दिन ! 3 कोर्ट कचहरी उम्र कट गई मिसल ना आगे बढ़ पाई जाने कब आते जाते थे उसको ये सरकारी दिन ! 4 पैदा हुए उसूलों के घर उस पर कलम पकड़ बैठे वरना क्या मुश्किल से हमको सत्ता के दरबारी दिन ! 5 शब्दो की मौत यह कहने से कि धरती कभी आग का गोला थी आज बर्फीले मौसम को कतई दह्शत नहीं होती शब्दो की तमक बुझ गयी है व्याकरन कि ताकत पर आखिर वे कब तक पुल्लिंग बने रह्ते जब कि वे मूलत नपुंसकलिंग ही थे तम्तमाये चेहरों और उभरी हुई नसो की अब इतनी प्रतिक्रिया होती है कि बांहो में बान्हे डाले दर्शक उनमें हिजडो के जोश का