13 पेज तीन पर माडल थे। चैनलांे मंे काम करने वाले थे। फैशन था। रेम्प था और स्थानीय चैनलांे के एंकर थे। एफ.एम. के जोकी थे, कुल मिलाकर एक ऐसा कोलाज था जिसका कैनवास तो बहुत बड़ा था, मगर रंग फीके थे। विचार नदारद थे। चिन्तन ढूंढ़े नहीं मिलता था। मन्थन की बात करना बेमानी था। अविनाश और उसके जैसे पच्चीसांे लोगांे की ये मजबूरियां थी। हर शहर की तरह इस शहर मंे भी धारावारिक बनाने वाले पैदा हो गये थे। ये लोग अपने फार्म हाऊसांे पर स्क्रीन टेस्ट के नाम पर स्किनटैस्ट करते। झूठा-सच्चा धारावाहिक बनाते। पैसे के बलबूते