चार्ली चैप्लिन मेरी आत्मकथा अनुवाद सूरज प्रकाश 9 ये एक ऐसा वक्त था जब हम किराया देने के बारे में ज्यादा माथा पच्ची नहीं करते थे। हमने आसान तरीका ये अपनाया कि जब किराया वसूल करने वाला आता तो सारा दिन गायब ही रहते। हमारे सामान की कीमत ही क्या थी? दो कौड़ी। उसे कहीं और ढो कर ले जाने में ज्यादा पैसे लगते। अलबत्ता, हमारी मंजिल एक बार फिर 3 पाउनाल टेरेस थी। उसी समय मुझे एक ऐसे बूढ़े आदमी और उसके बेटे के बारे में पता चला जो केनिंगटन रोड के पिछवाड़े की तरफ एक घुड़साल में काम