चौराहे का बुत (व्यंग्य) मै चौराहे का बुत बोल रहा हुँ। मै वही बुत या मूर्ति हुँ जिसे स्थापित करते समय भारी भीड़ आई थी । कुछ लोगों ने उस समय मेरे लिए बड़े-बड़े कसीदे गढ़े थे । आज मै अकेला खड़ा हुँ इसी चौराहे पर । लोग आस-पास से गुजर जाते ,मुझे अनदेखा करते हुए । कभी कुछ लोग आते है भीड़ के साथ और माला पहना जाते है । मै खड़ा रहता हुँ यहीं अकेला । जब शहर सो जाता है तब भी मै यहीं होता हुँ । तेज बारिश और तपती हुई धूप में भी मै