आत्मव्यक्ति - काव्य संग्रह

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फुटानी बाबुजी के दलानी में का उ फुटानी रहे बाबुजी के दलानी में,भर हीक खाई के, फटफटिया घुमाई के।यारन सभे आगे पीछे, गौगल चमकाई के,मोबाईल से सेल्फी लेवे गुटखा दबाई के। का उ फुटानी..... बितल उमरिया आईल दोपहरीया,एके से चार भइनी घिरनी जिंदगानी में।अबहीं याद आबता उ बाबूजी के,कईसन हाल रहे बाबुजी के दलानी में।राते-टदने देहीया गलइलन,हमनी के जिंदगी सवारे में।चार कोस नापत रहन अठ्ठनी बचावे में,हमनी मौज कइनी फटफटीया घुमावे में।अब का होई उ टदनवा भुनावे में,खेतबा त चर गईल देहिया चमका