तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 17 - आह्लाद के दिन

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तुम बदल रहे थे और इस बार तो साफ मैंने महसूस किया यह बदलाव। क्या कारण था। तुम कोशिश में लगे हुए थे पर संतोषजनक परिणाम आया नहीं था कहीं से। मुझे पूरा विश्वास था तुम्हारी क्षमताओं पर , पर तुम क्यों नकारात्मक हो रहे थे? समय लगता है जब हमारी आकांक्षाएं बड़ी हो, और मैं तो थी ही तुम्हारे साथ हर कदम पर।पर क्या मेरा साथ होना ही तुम्हें परेशान कर रहा था? दिल्ली में हमारी पहली मुलाकात, जो कि बहुप्रतीक्षित रही थी मेरे लिए, कहीं से मुलाकात भी नहीं लगी मुझे। शायद मेरे जोर देने की वजह से